Monday, 25 August 2014

तुम्हारे जाने के बाद (युवा कवि रविशंकर उपाध्याय की स्मृति में )

नम थी हजारों आँखे
विदा हो रहे थे तुम
लगा नियति का चक्र
उलट गया हो जैसे
शाम उदास थी
सुबह हताश
समय भाग रहा था
जीवन निर्जन सा हो गया था

सब कुछ हो रहा था
बच्चे स्कूल जा रहे थे
मजदूर अपने चौराहों पर
बिकने के लिए खड़े थे
लेकिन उदास थी वह गाय
जो अपने बछड़े को
दूध नहीं पिला पाई थी अभी

तुम्हारे जाने के बाद
गाँव देर से जगा
सूरज देर से निकला
पर
सरकार जल्दी बनी
घोषणाएं और भी जल्दी हुई
लोगों ने कहा
इतिहास अपने को दुहराने वाला है
रामराज्य आने वाला है
पर मुझे डर था तात
इतिहास जब भी अपने को दुहराता है
वह पहले से और भी ज्यादा
खूंखार, हिंशक और चालाक हो जाता है

मैंने देखा था तात
एक फूल को तलवार और गड़ासों में बदलते हुए
मैंने देखा था उस माँ को
जिसके गर्व से निकाल लिया गया था
उसका भविष्य

घर के मुंडेर पर बैठा कौवा
धीरे-धीरे बाज में परिवर्तित हो रहा था
उसकी आवाज
अब किसी के आने की सूचना नहीं देती
उसकी नजर
माँ की दी हुई दूध-भात से हट गई थी
वह समझौता कर रहा था बिल्ली से
उसकी आँखे लाल हो गई थी

तुम्हारे जाने के बाद
जाना पिता होने का अर्थ
माँ होने का दर्द
लड़की होने का भय
कमज़ोर होने का डर
और कवि होने के यथार्थ को |

               (वंशीधर उपाध्याय )




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