Monday, 18 August 2014

दंगे के फूल armaan anand

किताबों ने 
अर्थ का अनर्थ कर दिया था
तलवारें
गर्भ से बच्चे निकालने में व्यस्त हो गयीं थीं
चौराहे
जलते हुए टायरों के हवाले कर दिए गए
शहर
कर्फ्यू के शिकंजे में घिग्घिया रहा था
श्री राम और अल्ला हो अकबर के 
नारों के बीच
नाड़ों के टूटने की आवाजें
मौत की बाहों में सिमटने से पहले तक सिसक रही थीं
आँखों के पानी के सूखते ही
घर 
आग की आगोश में समा गए
इसी सुबह
रधिया की कॉपी पर जुम्मन ने लिखा था
'लभ यू' 
दोपहर चौथी घंटी में
जुम्मन के बस्ते के पते पर
इक चिट्ठी आई
जिसमे कुछ हर्फों के साथ उकेरा गया था
साड़ी का किनारा
उगता हुआ सूरज
और एक कमल
शाम होने तक
कमल
राक्षस में बदल गया
और चबा गया जुम्मन का दिल
जिसमे 
रधिया के नाम का तीर
रोज कहीं से उड़ता 
और आकर 
धंस जाता था।
©अरमान आनंद

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