चुप्पी को आवाज में बदलता कवि मदन कश्यप
प्रेम को दुख में बदलते तो देखा है, लेकिन क्या
कभी आपने दुख को प्रेम में बदलते देखा है! वैसा प्रेम जहाँ जीवन हो, मैं और तुम का
बंधन नहीं| आज प्रेम जब अपने परिभाषा को बदल रहा है, वैसे समय में प्रेम के अर्थ
को बचाने की चाहत वही कर सकता है जो प्रेम को शरीर की मादकता से नहीं बल्कि ह्रदय
की सात्विक अनिभूति से देखता है| जब दुख
में प्रेम झलकता है तो कालिदास की आँखे भर उठती हैं| शेक्सपियर सामने आकर खड़े हो
जातें हैं| निराला की अभिव्यक्ति जाग उठती हैं| शमशेर हमारी चेतना पर धीरे-धीरे
छाने लगते हैं| जब प्रेम हमारी चेतना पर धीरे-धीरे छाने लगा था कि एकाएक उस यथार्थ
से जा टकराया, जिसने हमारे ह्रदय, आत्मा, अनुभूति, सबको झकझोर कर रख दिया| क्या
आपने कभी सुनी है प्रेम में उस टकराहट की आवाज| कभी देखा है दुख को तालाब के जल
में ठहरा हुआ|
दुख
इतना था उसके जीवन में
कि
प्यार में भी दुख ही था
उसकी
आँखों में झाँका
दुख
तालाब के जल की तरह ठहरा हुआ था
उसे
बाहों में कसा
पीठ
पर दुख दागने के निशान की तरह दिखा
उसे
चूमना चाहा
दुख
होठों पर पपड़ियों की तरह जमा था
उसे
निर्वस्त्र करना चाहा
उसने
दुख पहन रखा था
जिसे
उतरना संभव नहीं था
कविता की यात्रा नीचे से ऊपर की ओर नहीं बल्कि
आंतरिक अनुभूति से बहार की ओर होती है| यही कारण है कि जीवन और संसार के प्रति
उसका दृष्टिकोण अनंत संघर्ष का होता है| सत्य को पचा जाना जितना त्रासद होता है
उससे ज्यादा कठिन होता है सत्य की अभिव्यक्ति| अपनें समय के सत्य को छुपा जाना
जीवन की भीषणता और कला का त्रास है| आज सत्य अभिव्यक्ति में कम चुप्पी में ज्यादा
परिवर्तित हो रहा है| इसलिए आज का अधिकांश सत्य हमारे वर्तमान का लडखडाता हुआ
विमर्श बन कर रह गया है| बुराई उसी जगह से अपना विस्तार पाती है जहां सत्य चुप्पी
में बदल जाता है| इसके बाद भी अगर कुछ बचता है तो सत्य को गल्प में बदल दिया जाता
है| जो साहित्यकार अपने समय के यथार्थ से संवाद करता है वह सत्य को गल्प होने से
बचा ले जाता है| सत्य के गल्प हो जाने की स्थिति में काफ्का ने विचार करते हुए कहा
है “गल्प का मतलब सच से पलायन हो जाता है”|
समकालीन कविता के पटल पर कुछ ऐसे हीं कवियों में
मदन कश्यप है जो सत्य को गल्प नहीं बल्कि जीवन की अनुभूति के रूप में बरकरार रखते
हैं| मदन कश्यप ने अपने नये कविता संग्रह ‘दूर तक चुप्पी’ की कविताओं में सच जो
कहने एवं गुनने की अभिव्यक्ति से एक उम्मीद जगाई है| इस संग्रह से गुजरते हुए उस
त्रासद यथार्थ का चित्र हमारे सामने उपस्थित होता है जो हमारे समय का सच है|
जब
पहली बार उसने हमारे पडोसी को मारा था
तब
बेहद गुस्सा आया था |
हमने
हत्यारे के खिलाफ़ आवाजें बुलंद की थी
और
जुलुस भी निकाले थे |
दूसरी
बार जब एक पडोसी मारा गया
तब
मैं गुमशुम-सा हो गया था
घर
दफ्तर सड़क हर जगह असहाय और अकेला
फिर
जब हमारे तीन-चार पडोसी एक साथ मारे गये
तब
हम हत्यारे की जयकार करते हुए सड़कों पर उतर आये |
अब
मै अकेला नहीं था | असहाय भी नहीं | पूरी भीड़ थी साथ |
हत्यारा
अब विजेता बन चुका था | हमारा नायक |
यथार्थ कभी-कभी कल्पना से भी ज्यादा संघनित होता
है| वह हमारे मनुष्य होने पर प्रश्न चिह्न लगा देता है| हम दुनिया को बेहतर बनाने
आये है या उसे बदत्तर बनाने ? यह प्रश्न हमशा मनुष्य को सोचना चाहिए| आज मनुष्य
अपनी मनुष्यता को दिनों-दिन खोता चला जा रहा है| वह बस उपभोक्ता और विक्रेता में
बदल गया है| क्या मनुष्य की त्रासद अवस्था कभी ऐसी होगी हमने सोचा था? मदन कश्यप
की कविता जो गुवाहाटी काण्ड पर लिखी गई है, हमारे मनुष्य होने पर प्रश्नचिह्न खड़ा
करती है |
वे
मजे के लिए उसके अंगों को मरोड़ रहे थे
मजे
के लिए उसके कपडे फाड़ रहे थे
मजे
के लिए उसे जलती सिगरेट से दाग रहे थे
उन्हें
बेहद मजा आ रहा था
तमाशबीनों
को अचरज हो रहा था
कि
वह एक जीवधारी की तरह चीख रही थी
बचने
के लिए गुहार लगा रही थी
जबकि
उनकी निगाह में वह सिर्फ माल थी सत्रह साल की |
अपने
को दुहरान आसन होता है,लेकिन उतना हीं मुश्किल होता है कुछ नया कर गुजरने की चाहत|
नया कर गुजरने की चाहत संघर्षशील चेतना को जन्म देती है| मदन कश्यप ने अपने नये
संग्रह ‘दूर तक चुप्पी’ में शिल्प और भाषा से अपने पारम्परिक कविता के रचनातमक
विवेक को एक नया आयाम दिया है| इस नये संग्रह की कविताएं अपने शिल्प को लेकर ख़ास
महत्वपूर्ण है| संग्रह की सभी कवितायेँ छोटी है और विषम पंक्तियों में लिखी गयी
है| विषम परिस्थितियों को दर्शाती विषम पंक्तियों की कविता अपने नये प्रयोग के
माध्यम से पाठक का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करती है| इस प्रयोग की खास बात यह है कि
यह पाठक को यह सोचने-समझने का मौका प्रदान करती है| यह कविता की सफलता है कि उसकी
अनुगूँज पाठक मन को दूर तलक ले जाती है केवल सम्वेदना के स्तर पर हीं नहीं बल्कि
वर्ण-शिल्प के स्तर पर भी| कविता अपनी मारक अभिव्यक्ति में किस तरह व्यापक सन्दर्भ को कम शब्दों में समेटती है यह
आज के दौर में मदन कश्यप और उनकी कविता की महत्वपूर्ण स्थिति को दर्शाता है-
‘लिखना
\ कब बच्चों ने छोड़ दिया रोना और माँगना’
डायरी का एक पन्ना.....(वंशीधर)

जब पहली बार उसने हमारे पडोसी को मारा था
ReplyDeleteतब बेहद गुस्सा आया था |
हमने हत्यारे के खिलाफ़ आवाजें बुलंद की थी
और जुलुस भी निकाले थे |
दूसरी बार जब एक पडोसी मारा गया
तब मैं गुमशुम-सा हो गया था
घर दफ्तर सड़क हर जगह असहाय और अकेला
फिर जब हमारे तीन-चार पडोसी एक साथ मारे गये
तब हम हत्यारे की जयकार करते हुए सड़कों पर उतर आये |
अब मै अकेला नहीं था | असहाय भी नहीं | पूरी भीड़ थी साथ |
हत्यारा अब विजेता बन चुका था | हमारा नायक |
समाज की इस विकृत मानसिकता के लिए जितनी दिलेरी से मदन कश्यप ने कलम चलाया है उतनी ही गंभीरता से वंशीधर जी ने इसकी समीक्षा कि है |लघुता से समग्रता का अच्छा प्रयास है|
armaan anand शोध छात्र bhu वाराणसी