Thursday, 29 October 2015

रविशंकर उपाध्याय स्मृति युवा कविता पुरस्कार 2016 -- अमृत सागर को।


               
                 बी .एच .यू .के हिंदी विभाग के शोध छात्र रहे युवा कवि रविशंकर उपाध्याय की स्मृति में प्रति वर्ष दिया जाने वाला 'रविशंकर उपाध्याय स्मृति युवा कविता पुरस्कार 2016' इस वर्ष बलिया के उनतीस वर्षीय युवा कवि और  दिल्ली में कार्यरत पेशे से पत्रकार अमृत सागर को दिया जायेगा। इस पुरस्कार का निर्णय कवि मदन कश्यप(दिल्ली), कथाकार अखिलेश(लखनऊ) और वाराणसी के कवि श्रीप्रकाश शुक्ल की समिति ने सर्वसम्मति से किया। निर्णायक मंडल ने अमृत सागर के नाम की अनुशंषा करते कहा है  कि  "इनकी उपलब्ध कविताओं से गुजरते महसूस होता है कि कविता की चौखट पर एक सर्वथा नयी और युवतम पीढ़ी दस्तक दे रही है जिसके यहाँ संवेदना की अभिव्यक्ति के  लिए अपनी तरह से काव्य मुहावरा भी विकसित हो रहा है | अमृत सागर की रचनात्मकता में वस्तुगत संसार और उसमें बसे हुए साधारण मनुष्यों के लिए लगाव तथा समर्थन उपस्थित है | इनके पास प्रतिरोध की चेष्टा के साथ एक पक्षधर राजनीतिक व्याख्या भी है जिसकी इन दिनों प्रायः कमी महसूस की जाती रही है | ये एक तरफ अपनी वैचारिकता से वैयक्तिक संवेदन को सामाजिकता की चमक देते हैं तो दूसरी तरफ   वे राजनीतिक विवेक को काव्यरूप दे सकने में भी सफलता प्राप्त करते है | संक्षेप में अमृत की ये कविताएँ अपने पाठ से युवतम कविता और स्वयं अमृत के लिए उम्मीद जगाती हैं "| यह पुरस्कार 12 जनवरी को रविशंकर उपाध्याय के जन्मदिन पर प्रदान किया जाएगा |
      ध्यातव्य है कि प्रतिभाशाली युवा कवि रविशंकर उपाध्याय का 19 मई 2014 को बी .एच .यू .के अस्पताल में तीस वर्ष की अवस्था में  ब्रेन हैमरेज से निधन हो गया था ।वे छात्रों के बीच काफी लोकप्रिय थे और बी. एच. यू. में 'युवा कवि संगम' जैसे आयोजन  के संस्थापकों में थे।उनका एक कविता संग्रह 'उम्मीद अब भी बाकी है' नाम से प्रकाशित है।उनकी स्मृति में पहला पुरस्कार वर्ष 2015 में झारखण्ड की युवा कवयित्री जसिंता केरकेट्टा को दिया गया था।
                                                             सचिव ,रविशंकर उपाध्याय स्मृति संस्थान वाराणसी

                                                                             वंशीधर उपाध्याय 

Monday, 26 October 2015

दिल्ली की रामलीला

                
                            
गोत्र और जाति में श्रेष्ठ
मंच पर ध्यान लगाया पुजारी
तल्लीन था तुम्हारी आरती में
ठीक उसी समय उसका बेटा
अपने हवस का शिकार बना रहा था एक मासूम बच्ची को  
तुम्हारे अनुयायी तुम्हारी मूर्ति और लीला के लिए
शहर को कब्रिस्तान बनाते जा रहे थे, और
तुम पालन कर रहे थे अपने राजधर्म का 
हे राम तुम्हे क्या कहूँ ?
वह बच्ची न तुम्हारी पत्नी थी, न
किसी राजघराने की पुत्री
जिसके लिए तुम युध्य करते
वह सभ्य समाज की किसी
बिगडैल ऋषि की पत्नी भी नहीं, जो  
किसी देवता के पाप की सजा भूगत रही हो
उसके पास तो कोई हनुमान भी नहीं,
जो एक इशारे पर सोने के राजमहल को लगा सके आग  
अब देखो, तुम्हारी लीला देखते हुए
असंख्य जकड़ने आ गई है शरीर में
मेरी पसलियां,
रीढ़ की हड्डी
और फेफडे की तुलना में
कही ज्यादा जकड़ गई है मेरी सांसे
गीली राख की परत जम गई है ह्रदय पर
पीले पड़ चुके हैं डायरी और पत्र के मासूम पन्ने
हे मर्यादा पुरूषोत्तम तुम्हें क्या कहूँ ?
                   वंशीधर उपाध्याय