Wednesday, 29 October 2014

अलविदा रविशंकर

                       
          कशी हिन्दू विश्वविद्यालय के राधाकृष्णन सभागार में छात्रों और शिक्षकों की नम आखें इस बात की गवाह बन रही थी कि किसी युवा साहित्कार का जाना एक सम्भावना का जाना होता है | कार्यक्रम था युवा कवि रविशंकर उपाध्याय की स्मृति में परिचय पत्रिका (संपादक श्रीप्रकाश शुक्ल) का लोकार्पण जिसका एक हिस्सा अलविदा रविशंकर नाम से युवा कवि डॉ रविशंकर उपाध्याय पर केन्द्रित है | परिचर्चा और काव्यपाठ ने कार्यक्रम को विशेष आकर्षक और सारगर्भित बनाया | यह संगोष्ठी अन्य संगोष्ठीयों से अलग थी | छात्रों के द्वारा एक छात्र पर किया गया यह आयोजन (जो अब हमारे स्मृति का हिस्सा बन चूका है ) सभी साहित्य प्रेमियों के लिए प्रेरणा स्रोत है | न कोई लोभ न किसी को खुश करने का ख्याल कुछ तो नहीं था इस कार्यक्रम में | मानवता की जगह आज भी सारे उच्तम मूल्यों से ऊपर है इस बात की प्रमाणिकता और अपने साथी को याद करने का यह मिजाज.... अनूठा ...|
          कार्यक्रम की शुरुआत मालवीय जी के माल्यार्पण और कुलगीत से शुरु हुआ लेकिन युवा साथी अभिषेक राय ने जैसे ही संचालन को आगे बढ़ाया धीर-धीरे मन और आत्मा सभागार की भींग गई | प्रमाण वहां वैठे सभी की नम आखें | स्वागत करने के लिए आये हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोo बलिराज पाण्डेय ने सम्बेदनात्मक वाक्यों से सभा को ऐसे जगह पंहुचा दिया जहाँ कुछ था तो बस रविशंकर उपाध्याय...... आचार्य .... बाबा और उम्मीद अब भी बाकि है... |  बस एक ही ख्याल काश आज तुम होते ! बहरहाल परिचय पत्रिका पर बोलने के लिए आए विंध्याचल यादव ने अपने चिर परिचित अंदाज में बोलना शुरू किया | उनके पास बहुत कुछ था जो ख़त्म होने का नाम हीं नहीं ले रहा था, खैर कार्यक्रम के दबाव के कारण इन्हें अपने मन को दबाना पड़ा | अभिषेकं ने आवाज दिया प्रोo श्रीप्रकाश शुक्ल को | डायस पर थे शुक्ल सर और मन में रविशंकर की वह यादें जिसे खुद उन्होंने अपने हाथों से गढ़ा था | रविशंकर उपाध्याय पर बोलना उनके लिए वैसा था जैसे पाला मार देने के बाद किसान अपने धान को देखता है | यह सभी मानते थे कि आचार्य जैसा शिष्य और श्रीप्रकाश सर जैसा गुरु कम लोगों को या न के बराबर मिलता है | खैर भरी मन से उन्होंने रविशंकर को याद करते हुए कहा कि रविशंकर जैसे कवि को याद करना अपने अन्दर के मनुष्यता को याद करना है | यादों की लड़ी और आखों में पानी सभागार को शांत , निश्छल , और निर्द्वन्द्व बना दिया था | स्व और पर का भेद मिट गया था | अब वक्ताओं के लिए “ नयी रचनाशीलता के विकास में साहित्यिक पत्रिकाओं की भूमिका”  पर बोलना मुश्किल हो रहा था जो पहले सत्र का विषय था | खैर साथी अभिषेक राय ने अपने संचालन वक्तव्य से विषय पर सारगर्भित प्रश्न उठाते हुए कार्यक्रम को आगे बढ़ाया | छात्रों के तरफ़ से बोलने की शुरुआत हुई | सुशील सुमन ने साहित्यिक पत्रिकाओं पर बात रखते हुए कहा कि हमेशा से ही साहित्यिक  पत्रिकाओं ने नयी रचना शीलता को आगे बढ़ाया है | पहले तो नए लेखक इन्हीं पत्रिकाओं के माध्यम से अपनी पहचान बनाते थे | इसकी कुछ आतंरिक राजनीति भी होती थी | और आज भी होती है | हाँ इधर एक नया परिवर्तन यह आया है कि सोशल मिडिया ने नयी रचनाशीलता को और एक नया मंच प्रदान किया है | रविश सिंह ने आचार्य को याद करते हुए साहित्यिक पत्रिकाओं की भूमिका पर अपनी बात रखी | आचार्य के साहित्यिक योगदान को याद करते हुए उन्होंने हिंदी विभाग के अध्यक्ष और कला संकाय प्रमुख से निवेदन किया कि आचार्य के नाम पर हिंदी विभाग के पुस्तकालय का नाम रखा जाए जिससे हिंदी साहित्य के इस कर्मयोगी के साहित्यिक योगदान को हम भविष्य तक संरक्षित कर सकें | इस प्रस्ताव का सभागार में बैठे सभी लोगों ने अपने करतल ध्वनि से स्वागत किया | कशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संघर्षशील तथा जुझारू छात्र नेता विकास यादव ने जोर देते हुए इस प्रस्ताव का समर्थन किया कि हम आचार्य के नाम पर इसलिए पुस्तकालय बनाने की मांग कर रहे है क्योंकि आचार्य ने हिंदी विभाग को नयी रचना शीलता और एक उर्वर जमीन प्रदान की, जो आने वाले समय और छात्रों के लिए प्रेरणा श्रोत है | अखिल भारतीय युवा कवि संगम , सम्भावना पत्रिका का प्रवेशांक , साहित्यिक आयोजनों की सक्रियता , कशी हिन्दू विश्वविद्यालय के नयी रचनाशीलता पर केन्द्रित संवेद पत्रिका का संपादन , तमाम पत्रिकाओं में कविताएँ तथा समीक्षा आचार्य के कम उम्र में बड़े योगदान हैं जिससे हिंदी विभाग को एक उर्वर जमीन मिली | आचार्य के मित्र तथा चाइना से पीएचडी कर रहे राजीव रंजन ने आचार्य के उस छवि को बताया जो कशी हिन्दू विश्वविद्यालय में आने के बाद कैसे एक लड़का सबको साहित्यिक बनाने के लिए अपने जीवन सुख सुबिधाओं को त्याग देता है | उन्होंने कहा कि हम सभी लोग तमाम फार्म भरते थे , लेकिन आचार्य का बस एक ही सपना था एक ही लक्ष था साहित्य और पठन-पाठन | उन्होंने अपने जीवन को साहित्य के लिए ही समर्पित कर दिया था | नए से नए रचनाकार को पढना, उससे लिखवाना, नए लड़कों को मंच देना , जैसे उनका धर्म हो गया था |  श्रुति कुमुद ने आचार्य को याद करते हुए कहा जब हम सभी jrf और नौकरी के लिए परेशान थे आचार्य इन चिताओं से दूर साहित्यिक रचनाशीलता में लीन थे | उनका जीवन सिर्फ साहित्य के लिए ही बना था | आज वह हमारे बीच नहीं है ऐसा लगता ही नहीं है | लगता है कभी किधर से भी  आएंगे और पूछेंगे क्या डाक्टर आजकल क्या लिख पढ़ रही हो | काश वह आज होते... |
          डॉ प्रभाकर सिंह ने बोलते हुए कहा कि आज साहित्यिक पत्रिकाओं में जहाँ एक तरफ़ केदारनाथ सिंह जैसे कवि छप रहे हैं वहीँ अनुज लुगुन जैसे युवा रचनाकार भी | नयी रचना शीलता को साहित्यिक पत्रिकाओं ने जगह दी है और पढा भी जा रहा है | वहीँ प्रोo राजकुमार ने विषय पर बोलते हुए साहित्यिक पत्रिकाओं के योगदान का आलोचनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत किया | साथ ही सोशल मिडिया और नयी रचना शीलता के गुण और दोष का भी सम्यक मूल्यांकन प्रस्तुत किया | सत्र के मुख्य वक्ता प्रोo रामकीर्ति शुक्ल अब डायस पर थे आखें नम, गला भरा हुआ | बोले- बहुत कुछ था बोलने को लेकिन साहस नहीं जुटा पा रहा हूँ | क्या भूलूं क्या याद करूँ | बोलते बोलते चुप हो जा रहे थे | सभागार भी चुप था लगा कुछ पल के लिए जीवन ठहर गया हो जैसे | सभा की अध्यक्षता कर रहे कला संकाय प्रमुख ने कहा कि ऐसे पुनीत आत्मा को याद कर हम धन्य हो जाते हैं | मानवता इसी को कहते हैं | उन्होंने छत्रों को विश्वास दिलाया और विभागाध्यक्ष से अनुरोध किया कि अगर ऐसा पुनीत कार्य हमलोगों के द्वारा हो कि हम रविशंकर उपाध्याय के नाम पर पुस्तकालय बनवा सकें तो इससे बड़ा हमारे मनुष्य होने का प्रमाण और क्या हो सकता है | घन्यबाद ज्ञापन वंशीधर उपाध्याय ने किया | भाषा टूटी हुई विखरी हुई | दिल भरा हुआ और दिमाग खाली |
                     कार्यक्रम के दूसरें सत्र की अध्यक्षता प्रोo बलिराज पाण्डेय कर रहे थे | मंच पर कवि थे प्रोo श्रीप्रकाश शुक्ल , डॉ आशीष त्रिपाठी , डॉ नीरज खरे और संचालन कर रहे थे युवा साथी कुमार मंगलम | इस सत्र में BA , MA तथा पीएचडी के युवा साथियों ने अपने कविताओं का पाठ किया | सच्चे अर्थो में आचार्य की स्मृति को याद करने का इससे सुखद और महत्वपूर्ण कार्य और क्या हो सकता है | जिसने युवा रचनाकारों को एक मंच देने के लिए जीवन भर प्रयास किया उसके स्मृति में युवा रचनाकारों का कविता पाठ आचार्य की सच्ची श्रधांजलि है | इन युवा रचनाकारों ने बहुत हीं अच्छी कविताओं का पाठ किया | सभागार थोड़ा खाली जरुर हो गया था लेकिन अच्छी कविताओं ने रोचकता को बढ़ा दिया था | आशीष त्रिपाठी और नीरज खरे ने रविशंकर उपाध्याय के स्मृति को याद करते हुए अच्छी तथा सारगर्भित कविताओं का पाठ किया | वहीँ सभागार में बैठीं प्रोo चंद्रकला त्रिपाठी ने रविशंकर को याद करते हुए कहा कि उसके पास एक बहुत बड़ा ह्रदय था | रविशंकर को याद करने वालों को भी अपने ह्रदय को वस्तृत करना चाहिए | इस अवसर पर डॉ रविशंकर उपाध्याय स्मृति संस्थान के द्वारा एक युवा कविता पुरस्कार की घोषणा की गई | यह पुरस्कार हर साल एक नए युवा कवि को दिया जाएगा | साथ ही आचार्य के जन्मदिन 12 जनवरी को उनके आने वाले काव्य संग्रह “उम्मीद अब भी बाकी है” का लोकार्पण और उस पर परिचर्चा के आयोजन की घोषणा प्रोo श्रीप्रकाश शुक्ल ने किया |  अंततः
                        हुई मुद्दत,  कि ग़ालिब मर गया, पर याद  आता  है
                  वह हर इक बात पर कहना, कि यों होता, तो क्या होता
                                                   वंशीधर उपाध्याय
                                              शोध छात्र भारतीय भाषा केंद्र
                                           जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली

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